Sunday, August 18, 2013

राणा फ़तेह सिंह और उनकी राष्ट्रभक्ति


 
 
                                                                     राणा फ़तेह सिंह
 

स्वामी दयानंद के जीवन के अंतिम वर्ष राजपूताने में राजपूत राजाओं का ध्यान भोग-विलास से हटाकर उनके पूर्वजों की वीरता और देशभक्ति स्मरण करवाकर, उन्हें प्रजा के लिये न्याय प्रिय एवं हितेषी बनाकर, उन्हें संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का आवाहन करना था। स्वामी दयानंद की असमय मृत्यु के कारण उनका यह उद्देश्य पूर्ण न हो सका। स्वामी जी के उपदेशों से प्रेरणा पाकर अनेक राजाओं के मन में देशप्रेम की लहरें हिलोरे मारने लगी थी। उन्हीं राजाओं में से एक थे राणा फ़तेह सिंह जी। राणा फ़तेह सिंह जी स्वामी दयानंद के शिष्य राणा सज्जन सिंह जी के पुत्र थे। आप अपने पिता के समान देशभक्त और स्वाभिमानी थे।

राणा फतेह सिंह और कवि शिरोमणि केसरी सिंह बारहठ 

 

लार्ड कर्जन द्वारा १९०३ में अंग्रेजों की धाक ज़माने के लिए दिल्ली में दरबार का आयोजन किया गया था। देश के सभी राजाओं को उस दरबार में आने और भेंट लाने के लिए आमंत्रित किया गया था। कर्जन को ऐसा लगा की अगर मेवाड़ के राणा उसके राजसूय यज्ञ में भाग लेने नहीं आये तो उसका यज्ञ सम्पूर्ण नहीं होगा। आज तक मेवाड़ का कोई भी राणा दिल्ली नहीं गया था क्यूंकि न उन्होंने कभी भी मुगलों की पराधीनता स्वीकार की थी और न ही उन्होंने अपना स्वाभिमान खोकर जीना सीखा था जबकि कर्जन राणा को अपने हाथी के पीछे चलाने का और दरबार में बैठ कर उनसे भेंट लेने का सपना देख रहा था। कूट नीति से मवाद का राणा को किसी प्रकार दिल्ली आने के लिए राजी कर लिया गया। मगर मवाद की जनता को उनका यह निर्णय स्वाभिमान पर चोट के समान लग रहा था।

राजस्थान के कवि शिरोमणि अपने कर्तव्य को अभी नहीं भूले थे। स्वामी दयानंद के शिष्य बारहठ परिवार के केसरी सिंह को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने १३ दोहे राणा फ़तेह सिंह को लिख कर भेजे। राणा जी की विशेष रेल गाड़ी दिल्ली की लिए चल दी थी। उन्हें यह दोहे रूपी सन्देश अगले स्टेशन पर मिले।

यह दोहे अर्थ सहित यहाँ पर दिए गये हैं

पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |

(ईंसू) महाराणा'र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||1||

 

भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है |

 

घणा घलिया घमसांण, (तोई) राणा सदा रहिया निडर |

(अब) पेखँतां, फ़रमाण हलचल किम फ़तमल! हुवै ||2||

 

अनगिनत व भीषण युद्ध लड़ने के बावजूद भी मेवाड़ के महाराणा कभी किसी युद्ध से न तो विचलित हुए और न ही कभी किसी से डरे उन्होंने हमेशा निडरता ही दिखाई | लेकिन हे महाराणा फतह सिंह आपके ऐसे शूरवीर कुल में जन्म लेने के बावजूद लार्ड कर्जन के एक छोटे से फरमान से आपके मन में किस तरह की हलचल पैदा हो गई ये समझ से परे है |

 

गिरद गजां घमसांणष नहचै धर माई नहीं |

(ऊ) मावै किम महाराणा, गज दोसै रा गिरद मे ||3||

 

 

मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा लड़े गए अनगिनत घमासान युद्धों में जिनमे हजारों हाथी व असंख्य सैनिक होते थे कि उनके लिए धरती कम पड़ जाती थी आज वे महाराणा अंग्रेज सरकार द्वारा २०० गज के कक्ष में आयोजित समरोह में कैसे समा सकते है ? क्या उनके लिए यह जगह काफी है ?

 

ओरां ने आसान , हांका हरवळ हालणों |

(पणा) किम हालै कुल राणा, (जिण) हरवळ साहाँ हंकिया ||4||

 

 

अन्य राजा महाराजाओं के लिए तो यह बहुत आसान है कि उन्हें कोई हांक कर अग्रिम पंक्ति में बिठा दे लेकिन राणा कुल के महाराणा को वह पंक्ति कैसे शोभा देगी जिस कुल के महाराणाओं ने आज तक बादशाही फौज के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को युद्ध में खदेड़ कर भगाया है |

 

नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकाँ |

(पण) पसरैलो किम पाण, पाणा छतां थारो फ़ता! ||5||

 

 

अन्य राजा जब अंग्रेज सरकार के आगे नतमस्तक होंगे और उसे हाथ बढाकर झुक कर नजराना पेश करेंगे | उनकी तो हमेशा झुकने की आदत है वे तो हमेशा झुकते आये है लेकिन हे सिसोदिया बलशाली महाराणा उनकी तरह झुक कर अंग्रेज सरकार को नजराना पेश करने के लिए आपका हाथ कैसे बढेगा ? जो आज तक किसी के आगे नहीं बढा और न ही झुका |

 

सिर झुकिया सह शाह, सींहासण जिण सम्हने |

(अब) रळनो पंगत राह, फ़ाबै किम तोने फ़ता! ||6||

 

 

हे महाराणा फतह सिंह ! जिस सिसोदिया कुल सिंहासन के आगे कई राजा,महाराजा,राव,उमराव ,बादशाह सिर झुकाते थे | लेकिन आज सिर झुके राजाओं की पंगत में शामिल होना आपको कैसे शोभा देगा ?

 

सकल चढावे सीस , दान धरम जिण रौ दियौ |

सो खिताब बखसीस , लेवण किम ललचावसी ||7||

 

 

जिन महाराणाओं का दिया दान,बख्शिसे व जागीरे लोग अपने माथे पर लगाकर स्वीकार करते थे | जो आजतक दूसरो को बख्शीस व दान देते आये है आज वो महाराणा खुद अंग्रेज सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्टार ऑफ़ इंडिया नामक खिताब रूपी बख्शीस लेने के लालच में कैसे आ गए ?

 

देखेला हिंदवाण, निज सूरज दिस नह सूं |

पण "तारा" परमाण , निरख निसासा न्हांकसी ||8||

 

 

हे महाराणा फतह सिंह हिंदुस्तान की जनता आपको अपना हिंदुआ सूर्य समझती है जब वह आपकी तरफ यानी अपने सूर्य की और स्नेह से देखेगी तब आपके सीने पर अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया " तारा" (स्टार ऑफ़ इंडिया का खिताब ) देख उसकी अपने सूर्य से तुलना करेगी तो वह क्या समझेगी और मन ही मन बहुत लज्जित होगी |

 

देखे अंजस दीह, मुळकेलो मनही मनां |

दंभी गढ़ दिल्लीह , सीस नमंताँ सीसवद ||9||

 

 

जब दिल्ली की दम्भी अंग्रेज सरकार हिंदुआ सूर्य सिसोदिया नरेश महाराणा फतह सिंह को अपने आगे झुकता हुआ देखेगी तो तब उनका घमंडी मुखिया लार्ड कर्जन मन ही मन खुश होगा और सोचेगा कि मेवाड़ के जिन महाराणाओं ने आज तक किसी के आगे अपना शीश नहीं झुकाया वे आज मेरे आगे शीश झुका रहे है |

 

अंत बेर आखीह, पताल जे बाताँ पहल |

(वे) राणा सह राखीह, जिण री साखी सिर जटा ||10||

 

 

अपने जीवन के अंतिम समय में आपके कुल पुरुष महाराणा प्रताप ने जो बाते कही थी व प्रतिज्ञाएँ की थी व आने वाली पीढियों के लिए आख्यान दिए थे कि किसी के आगे नहीं झुकना ,दिल्ली को कभी कर नहीं देना , पातळ में खाना खाना , केश नहीं कटवाना जिनका पालन आज तक आप व आपके पूर्वज महाराणा करते आये है और हे महाराणा फतह सिंह इन सब बातों के साक्षी आपके सिर के ये लम्बे केश है |

 

"कठिण जमानो" कौल, बाँधे नर हीमत बिना |

(यो) बीराँ हंदो बोल, पातल साँगे पेखियो ||11||

 

 

हे महाराणा यह समय बहुत कठिन है इस समय प्रतिज्ञाओं और वचन का पालन करना बिना हिम्मत के संभव नहीं है अर्थात इस कठिन समय में अपने वचन का पालन सिर्फ एक वीर पुरुष ही कर सकता है | जो शूरवीर होते है उनके वचनों का ही महत्व होता है | ऐसे ही शूरवीरों में महाराणा सांगा ,कुम्भा व महाराणा प्रताप को लोगो ने परखा है |

 

अब लग सारां आस , राण रीत कुळ राखसी |

रहो सहाय सुखरास , एकलिंग प्रभु आप रै ||12||

 

 

हे महाराणा फतह सिंह जी पुरे भारत की जनता को आपसे ही आशा है कि आप राणा कुल की चली आ रही परम्पराओं का निरवाह करेंगे और किसी के आगे न झुकने का महाराणा प्रताप के प्रण का पालन करेंगे | प्रभु एकलिंग नाथ इस कार्य में आपके साथ होंगे व आपको सफल होने की शक्ति देंगे |

 

मान मोद सीसोद, राजनित बळ राखणो |

(ईं) गवरमेन्ट री गोद, फ़ळ मिठा दिठा फ़ता ||13||

हे महाराणा सिसोदिया राजनैतिक इच्छा शक्ति व बल रखना इस सरकार की गोद में बैठकर आप जिस मीठे फल की आस कर रहे है वह मीठा नहीं खट्ठा है |

केसरी सिंह बारहठ की चेतावनी सुनकर महाराणा का स्वाभिमान चेता। उनकी गाड़ी सिल्ली अवश्य पहुँच गई थी पर वह वहाँ पर उतरे नहीं अपितु अगली गाड़ी से वापिस चल दिये थे। जब दिल्ली में कर्जन दरबार लगा रहा था तब महाराणा की विशेष गाड़ी उदयपुर की और लौट रही थी। कर्जन के दरबार में महाराणा की खली कुर्सी फिरंगियों को चिड़ा रही थी।

 

वीर फ़तेह सिंह और अंग्रेजों का अहम

 

मई १९१० में अंग्रेजों के सम्राट एडवर्ड सात की मृत्यु के पश्चात उसका लड़का जॉर्ज पंचम राजगद्दी पर बैठा। लार्ड हार्डिंग भारत का वाइसराय बना और भारत में सामान्य प्रजा में बढ़ रही असंतुष्ठता और क्रांति की भावना को शांत करने के लिये जॉर्ज पंचम भारत आया। अंग्रेजों ने १२ दिसम्बर को दिल्ली में राजदरबार रचकर भारतीय प्रजा की राजभक्ति का प्रदर्शन करने का विचार बनाया । स्वाभिमान के प्रतिक मेवाड़ के राणा फतेह सिंह ठीक उसी समय पर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने बेटे की बीमारी का बहाना बनाकर अंग्रेजों से टरक गया और बरोड़ा नरेश सया जी राव गायकवाड़ दरबार के समय निर्धारित शिष्टता के व्यवहार की अवहेलना कर अंग्रेज सरकार की किरकरी करी और भारतीय जनता ने राष्ट्रीय गर्व का अनुभव किया।

 

महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा अंग्रेजों की ट्रेन

 

महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा अंग्रेजों की ट्रेन को जब्त करने का किस्सा बेहद प्रसिद्द हैं। अंग्रेजों ने उदयपुर और चितोड़ गढ़ के बीच एक ट्रेन चलानी आरंभ कर दी। रेल लाइन भूपाल सागर तालाब के समीप से गुजरती थी। एक बार तालाब के टूट जाने से रेल की पटरियाँ बह गई। अंग्रेजों ने महाराणा को पत्र लिखा की उनके तालाब के कारण रेल की पटरी बह गई  और इससे अंग्रेजों को १६ लाख का नुकसान हो गया। अत: इस नुक्सान की पूर्ति मेवाड़ सरकार को करनी चाहिए। महाराणा ने अंग्रेजों के पत्र को सुनकर उसका यह उत्तर दिया की चूँकि भूपाल सागर तालाब पहले बना था और रेललाइन बाद में निकाली गई थी इसलिए रेलगाड़ी की घड़ घड़ाहट से तालाब की नींव हिल गई और तालाब के टूटने से कई गाँव में पानी फैल गया हैं और फसल डूब गई हैं। इससे मेवाड़ सरकार को ३२ लाख रुपये का नुक्सान हो गया हैं। अंग्रेज सरकार इस नुक्सान की पूर्ति करे और जब तक इस नुक्सान की पूर्ति नहीं की जाएगी तब तक उनकी रेलगाड़ी मवाद सरकार के पास जब्त रहेगी। यह कहकर राणा जी ने अंग्रेजों की गाड़ी को जब्त कर लिया।

अंग्रेजों को जब राणा जी का उत्तर मिला तो वे चकित रह गये और अंत में उन्होंने राणा जी को रेलगाड़ी सौंप दी।

इस घटना से न केवल राणा जी की वीरता और स्वाभिमान का विवरण मिलता हैं अपितु अंग्रेजों द्वारा भारतीय रियासतों पर किये गये अत्याचार का भी मालूम चलता हैं।

 

अंग्रेजों के राज्य में भी राणा फ़तेह सिंह की वीरता और स्वाभिमान से आज भी हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊँचा हो रहा हैं।

डॉ विवेक आर्य

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