Friday, October 25, 2013

आखिर सहारा तो स्वामी दयानंद का ही लेना पड़ेगा



 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा १३ अक्टूबर को जयपुर में करीब १० हज़ार स्वयंसेवकों कि उपस्थिति में विजयादशमी दिवस बनाया गया। इस अवसर पर उद्बोधन देने के लिए जैन मुनि क्रान्तिकारी संत तरुण सागर को बुलाया गया था। जैन मुनि तरुण सागर कड़वे वचन देने के लिए प्रसिद्द हैं उनके भाषण के दो कड़वे वचन इस प्रकार थे:-
१. आज के युग में अगर कृष्ण बनोगे तो जूते खाने पड़ेगे।
२. एक तथाकथित संत ने श्री कृष्ण के समान रासलीला रचाई परिणाम स्वरुप वे सलाखों के पीछे हवा खा रहे हैं।

इन दोनों कड़वे वचनों में एक ओर श्री कृष्ण जी महाराज पर चरित्रहीन और रसिया होने का आक्षेप दबे शब्दों में किया गया हैं दूसरी और आशाराम बापू पर निशाना साधा गया हैं। वैसे कुछ वर्ष पहले मैंने स्वयं आस्था चैनल पर तरुण सागर को यह कहते सुना था कि महाभारत के काल में क्रांति के लिए एक कृष्ण कि आवश्यकता पड़ी थी, आज जब स्थिति पहले से भी अधिक विकट हैं, तब न जाने कृष्ण जैसे कितने क्रांतिकारी संतों कि आवश्यकता पड़ेगी। ध्यान दे कि तरुण सागर जी स्वयं को क्रन्तिकारी संत कहते हैं। और अब ठीक उन्ही के कथन के विपरीत तरुण सागर जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच से योगिराज श्री कृष्ण जी महाराज का किस प्रकार से महिमा मंडन कर रहे हैं पाठक स्वयं समझ गये होगे।
हमारे देश के इतिहास में किसी भी ऐतिहासिक पुरुष के नाम पर सबसे अधिक असत्य लाँछन अगर किसी के लगाये गये हैं, तो वो श्री कृष्ण जी महाराज हैं। विधर्मी, नास्तिक आदि लोग तो पहले ही श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में ऐसी अनेक अनावश्यक टिपण्णी करते रहते हैं, मगर जैन मुनि द्वारा कहे गये इन कथनों के पीछे मुझे दो कारण  स्पष्ट प्रतीत होते हैं।

१. श्री कृष्ण जी महाराज के वास्तविक जीवन चरित से जैन मुनि कि अनभिज्ञता और प्रचलित पौराणिक कहानियों को उनके द्वारा सत्य मानना।
२. जैनसमाज के ग्रंथों में श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में जैन लेखकों द्वारा नकारात्मक वर्णन।
 
आईये सप्रमाण इस विषय को समझने का प्रयास करे:-

.श्री कृष्ण जी महाराज के वास्तविक जीवन चरित से जैन मुनि कि अनभिज्ञता और उनके द्वारा प्रचलित पौराणिक कहानियों को सत्य मानना।
स्वामी दयानंद जी महाराज अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते हैं की पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं स्वामी जी ने उन्हें आपत (श्रेष्ठ) पुरुष कहाँ हैं। स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान विद्वान सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्द करना उनका अपमान नहीं तो और क्या हैं।

श्री कृष्ण जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का आधार क्या हैं? इनका आधार हैं पुराण।
पुराण में गोपियों से कृष्ण का रमण करना

विष्णु पुराण अंश ५ अध्याय १३ श्लोक ५९,६० में लिखा हैं
वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति विषय भोगकी इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण भोगकिया करती थी। कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे।

 कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के रचियता ने श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं।  भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय ३३ शलोक १७ में लिखा हैं

कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे खुलकर हास विलास मजाककरते थे। जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपनी परछाई से खेलता हैं वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीड़ा विषय भोगकिया।
भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय २९ शलोक ४५,४६ में लिखा हैं

कृष्ण ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर गोपियों के साथ प्रवेश किया। वह स्थान जलतरंगों से शीतल व कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था। वहां कृष्ण ने गोपियों के साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना, उनकी छोटी पकड़ना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे का नारा खींचना, स्तन (पकड़ना) मजाक करना नाखूनों से उनके अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के द्वारा नवयोवना गोपियों को खूब जागृत करके, उनके साथ कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया।
ऐसे ही अभद्र विचार कृष्ण जी महाराज को कलंकित करने के लिए भागवत के रचियता नें स्कन्द १० के अध्याय २९,३३ में वर्णित किये हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं वर्णन नहीं कर रहा हूँ।

राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन
राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं। महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता। राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनिय वृतांत का वर्णन करते हुए मिलता हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ शलोक ५९,६०,६१,६२ में लिखा हैं की गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकड़ लिया तो शाप देकर कहाँ हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता हैं हे चंचल , हे अति लम्पट कामचोर मैंने तुझे जान लिया है। तू मेरे घर से चला जा। तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं, तुझे मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा। हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त हैं, इसे निकल कर बाहर करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय १५ में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए में यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर रहा हूँ।

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ७२ में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं।
राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं। राधा कृष्ण के बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी ,चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यशोधा का भाई था, इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई।  अजीब गड़बड़ झाला हैं

कृष्ण की गोपियाँ कौन थी?
पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय २४५ कलकत्ता से प्रकाशित में लिखा हैं की रामचंद्र जी दंडकारण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुंदर स्वरुप को देखकर वहाँ के निवासी सारे ऋषि मुनि उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे, उन सारे ऋषियों  ने द्वापर के अंत में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया। इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई। वर्ना अन्य प्रकार से उनकी संसार रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती।

क्या गोपियों की उत्पत्ति का दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार किया जा सकता हैं?
मेरे विचार से इन सभी प्रमाणों से यह आसानी से सिद्ध हो जाता हैं कि पुराणों ने श्री कृष्ण जी महाराज के चरित्र को बदनाम करने में किसी भी प्रकार से कोई कोर कसर छोड़ी नहीं हैं।

स्वामी दयानंद ने इसी कारण से भागवत के रचियता के विषय में कहा था कि क्यूँ वह माता कि कोख में नष्ट नहीं हो गया।
२. जैन ग्रंथों में श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में जैन लेखकों द्वारा नकारात्मक वर्णन।

जैन समाज के ग्रंथों में श्री कृष्ण जी महाराज को नरक जाने वाला लिखा हैं।
एक और जैन ग्रन्थ विवेकसार में जैन साधु चाहे चरित्रहीन हो फिर भी स्वर्ग को जायेगा दूसरी और श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में उन्हें नरक गामी लिखा हैं।

जैन मत का साधू चरित्रहिन हो, तो भी अन्य मत के साधुओं से श्रेष्ठ हैं। सन्दर्भ:- विवेकसार पृष्ठ १६८
श्रावक लोग जैनमत के साधुओं को चरित्रहीन भ्रष्टाचारी देखें, तो भी उनकी सेवा करनी चाहिए। सन्दर्भ:- विवेकसार पृष्ठ १७१

श्री कृष्ण तीसरे नरक में गया। सन्दर्भ:- विवेकसार पृष्ठ १०६
श्री कृष्ण वासुदेव ये सब ग्यारहवें, बाहरवें, चौदहवें,पंद्रहवें, अठारहवें, बीसवें और बाइसवें तीर्थंकरों के समय में नरक को गये। सन्दर्भ:- रत्नसार भाग १ पृष्ठ १७०- १७१

महापुराण के अंतर्गत उत्तर पुराण (गुणभद्राचार्यप्रणीत) के ५७ वें पर्व में त्रिपृष्ठ के नरकगामित्व का वर्णन:-
कृष्ण का जीव पहले अमृत रसायन हुआ, फिर तीसरे नरक में गया, उसके बाद संसार सागर में बहुत भारी भ्रमण कर यक्ष नाम का गृहस्थ हुआ, फिर निर्नामा नाम का राजपुत्र हुआ, उसके बाद देव हुआ और उसके बाद बुरा निदान करने के कारण अपने शत्रु जरासंध को मारने वाला, चक्ररत्न का स्वामी कृष्ण नाम का नारायण हुआ, इसके बाद प्रथम नरक में उत्पन्न होने के कारण बहुत दुखों का अनुभव करता रहा हैं और अंत में वहाँ से निकलकर समस्त अनर्थों का विघात करने वाला तीर्थंकर होगा। (७२/ २८०- २८१)- संपादक पंडित पन्नालाल जैन साहित्याचार्य

ऊपर लिखे सन्दर्भ से यही सिद्ध होता हैं कि व्यक्ति महान तभी कहलायेगा जब वह जैन तीर्थंकर होगा।
स्वामी दयानंद सत्यार्थ प्रकाश के १२ वें सम्मुलास में जैन ग्रंथों के कथन कि समीक्षा करते हुऐ लिखते हैं कि

"भला कोई बुद्धिमान पुरुष विचारे कि इनके साधु गृहस्थ और तीर्थकर, जिनमें बहुत से वेश्यागामी परस्त्रीगामी चोर आदि सब जैनमतस्थ स्वर्ग और मुक्ति को गये। और श्री कृष्ण आदि महाधार्मिक महात्मा सब नरक को गये। यह कहना कितनी बड़ी बुरी बात हैं।"
श्री कृष्ण जी महाराज का वास्तविक रूप

अभी तक हम पुराणों में वर्णित लम्पट, गोपियों के दुलारे, राधा के पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय, जैन ग्रंथों में श्री कृष्ण को नरकगामी आदि के विषय में पढ़ रहे थे जो निश्चित रूप से असत्य हैं.
अब हम योगिराज, निति निपुण, महान कूटनीतिज्ञ, तपस्वी श्री कृष्ण जी महाराज के सत्य रूप को जानेगे।
 आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र चटर्जी जिन्होंने ३६ वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं की महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी २ या ३ या १६००० पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। रुक्मणी से विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और १२ वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रद्युमन था। यह श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम १६००० गोपियों के साथ जोड़ा जाता हैं। महाभारत के श्री कृष्ण जैसा अलोकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता हैं। स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते हैं जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहाँ हैं। पांडवों द्वारा महाभारत में जब राजसूय यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू महात्मा आदि उपस्थित थे। वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज की यह श्रेष्ठता भी समझने योग्य हैं की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार उस यज्ञ में लिया था। श्री कृष्ण जी महाराज को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय दिलवाई थी।

इस लेख के माध्यम से मेरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अथवा तरुण सागर मुनि का विरोध करना नहीं हैं अपितु यह सन्देश देना हैं कि जिस मंच के माध्यम से और जिस स्थान पर बैठ कर तरुण मुनि जी कृष्ण जी महाराज के बारे में असत्य कथन कह रहे हैं, उससे हिन्दू समाज का किसी भी प्रकार से भला नहीं हो सकता अपितु इससे भ्रम फैलता हैं। इसे हम दूरदृष्टि कि कमी और मत-मतान्तर कि संकीर्ण सोच का उदहारण ही कहेगे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी स्वामी दयानंद जी कि समाज सुधारक कुछ मान्यताओं का पालन तो कुछ हद तक करता हैं, परन्तु स्वामी जी के वेद आधारित अध्यात्मिक दृष्टिकौन को उतना महत्व नहीं देता। यही कारण हैं कि संघ कि विचारधारा को मानने वालों में धार्मिक मान्यताओं में एकात्मकता न होने के कारण धार्मिक क्षेत्र में संघ कि छवि हिंदुत्व के नाम पर पाखंड, अन्धविश्वास, कर्म काण्ड आदि को समर्थन देने वाली संस्था मात्र बन कर रह गया हैं। श्री कृष्ण जी महाराज के असत्य स्वरुप को मानोगे तो जूते उस काल में भी पड़ते, जब श्री कृष्ण जी इस धरती पर विराजमान थे और आज भी पड़ेगे, परन्तु अगर श्री कृष्ण जी महाराज के सत्य स्वरुप को मानोगे, तो आपका ही कल्याण होगा।
  अंत में मैं देश, धर्म और जाती के हित में एक ही बात कहना चाहूँगा कि इस प्रकार कि गलतियाँ दोबारा न हो इससे बचने के लिए एक ही उपाय हैं:-

                                    "आखिर सहारा तो स्वामी दयानंद का ही लेना पड़ेगा"

4 comments:

  1. ant mein buddha par hi aana padega

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  2. अंत में बुद्ध कहा पहुँचे थे? जानते हो, वेदों कि शिक्षा के मूलभूत सन्देश को ही गौतम बुद्ध ने अंत में जाना और बताया था।

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  3. Mujhe bata paoge kaunse tirthankar veshyagaami chhor aadi the??? Jain dharm ko na palte hue bhi log swarg jaa sakte hai par moksha ke liye Jain dharma jaruri hai aisa hum mange hai kisi pe thopte nahi aapki tarah.

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    1. आप एक बार दोबारा से इस लेख को देखिये। उसका सार यह हैं कि चाहे व्यक्ति चरित्रहीन हो मगर वह स्वर्ग को जायेगा अगर वह जैन साधू हो , और अगर व्यक्ति कितना भी चरित्रवान हो वह नरक को जायेगा क्यूंकि वह जैन नहीं हैं।
      इस मनोवृति में और तालिबान कि मनोवृति में मुझे किसी भी प्रकार का भेद नहीं दीखता जो यह मानता हैं केवल मुस्लिम को जन्नत मिलेगी आचरण उसका भला कैसा भी हो, गैर मुस्लिम चाहे कितना भी धार्मिक क्यूँ न हो वह दोजख में जायेगा क्यूंकि वह अल्लाह उस उनके अंतिम पैगम्बर रसूल पर कभी विश्वास नहीं लाया हैं।
      इस कथन पर प्रतिक्रिया दीजिये

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