Saturday, November 16, 2013

गुरु नानक एवं उनका प्रकाश उत्सव



आज गुरु नानक जी का प्रकाश उत्सव हैं। हर साल की भांति सिख समाज गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर गुरुद्वारा जाते हैं, शब्द कीर्तन करते हैं, लंगर छकते हैं, नगर कीर्तन निकालते हैं। चारों तरफ हर्ष और उल्लास का माहौल होता हैं।

एक जिज्ञासु के मन में प्रश्न आया की हम सिख गुरु नानक जी का प्रकाश उत्सव क्यूँ बनाते हैं?

एक विद्वान ने उत्तर दिया की गुरु नानक और अन्य गुरु साहिबान ने अपने उपदेशों के द्वारा हमारा जो उपकार किया हैं, हम उनके सम्मान के प्रतीक रूप में उन्हें स्मरण करने के लिए उनका प्रकाश उत्सव बनाते हैं।

जिज्ञासु ने पुछा इसका अर्थ यह हुआ की क्या हम गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर उनके उपदेशों को स्मरण कर उन्हें अपने जीवन में उतारे तभी उनका प्रकाश उत्सव बनाना हमारे लिए यथार्थ होगा।

विद्वान ने उत्तर दिया आपका आशय बिलकुल सही हैं , किसी भी महापुरुष के जीवन से, उनके उपदेशों से प्रेरणा लेना ही उसके प्रति सही सम्मान दिखाना हैं।

जिज्ञासु ने कहा गुरु नानक जी महाराज के उपदेशों से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं।

विद्वान ने कुछ गंभीर होते हुए कहाँ की मुख्य रूप से तो गुरु नानक जी महाराज एवं अन्य सिख गुरुओं का उद्दश्य हिन्दू समाज में समय के साथ जो बुराइयाँ आ गई थी, उनको दूर करना था, उसे मतान्ध इस्लामिक आक्रमण का सामना करने के लिए संगठित करना था। जहाँ एक ओर गुरु नानक ने अपने उपदेशों से सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध जन चेतना का प्रचार किया वही दूसरी ओर गुरु गोविन्द सिंह ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए हिन्दू जाति में शक्ति का प्रचार किया।

गुरु साहिबान के मुख्य उपदेश इस प्रकार हैं:-



१. हिन्दू समाज से छुआछुत अर्थात जातिवाद का नाश होना चाहिए।

२. मूर्ति पूजा आदि अन्धविश्वास एवं धर्म के नाम पर पाखंड का नाश होना चाहिए।

३. धुम्रपान, मासांहार आदि नशों से सभी को दूर रहना चाहिए।

४. देश, जाति और धर्म पर आने वाले संकटों का सभी संगठित होकर मुकाबला करे।



गुरु नानक के काल में हिन्दू समाज की शक्ति छुआछुत की वीभत्स प्रथा से टुकड़े टुकड़े होकर अत्यंत क्षीण हो गयी थी जिसके कारण कोई भी विदेशी आक्रमंता हम पर आसानी से आक्रमण कर विजय प्राप्त कर लेता था। सिख गुरुओं ने इस बीमारी को मिटाने के लिए प्रचण्ड प्रयास आरम्भ किया। ध्यान दीजिये गुरु गोविन्द सिंह के पञ्च प्यारों में तो सवर्णों के साथ साथ शुद्र वर्ण के भी लोग शामिल थे। हिन्दू समाज की इस बुराई पर विजय पाने से ही वह संगठित हो सकता था। गुरु कि खालसा फौज में सभी वर्णों के लोग एक साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर शत्रु से संघर्ष करते थे, एक साथ बैठकर भोजन करते थे, खालसा कि यही एकता उनकी अपने से कही ज्यादा ताकतवर शत्रु पर विजय का कारण थी। विडंबना यह हैं कि आज का सिख समाज फिर से उसी बुराई से लिप्त हो गया हैं। हिन्दू समाज के समान सिख समाज में भी स्वर्ण और मजहबी अर्थात दलित सिख , रविदासिया सिख आदि जैसे अनेक मत उत्पन्न हो गए जिनके गुरुद्वारा, जिनके ग्रंथी, जिनके शमशान घाट सब अलग अलग हैं। कहने को वे सभी सिख हैं अर्थात गुरुओं के शिष्य हैं मगर उनमें रोटी बेटी का किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं हैं। जब सभी सिख एक ओमकार ईश्वर को मानते हैं, दस गुरु साहिबान के उपदेश और एक ही गुरु ग्रन्थ साहिब को मानते हैं तो फिर जातिवाद के लिए उनमें भेदभाव होना अत्यंत शर्मनाक बात हैं। इसी जातिवाद के चलते पंजाब में अनेक स्थानों पर मजहबी सिख ईसाई बनकर चर्च की शोभा बड़ा रहे हैं। वे हमारे ही भाई थे जोकि हमसे बिछुड़ कर हमसे दूर चले गए। आज उन्हें वापस अपने साथ मिलाने की आवश्यकता हैं और यह तभी हो सकता हैं,जब हम गुरु साहिबान का उपदेश मानेगे अर्थात छुआछुत नाम की इस बीमारी को जड़ से मिटा देगे।

अन्धविश्वास, धर्म के नाम पर ढोंग और आडम्बर ,व्यर्थ के प्रलापों आदि में पड़कर हिन्दू समाज न केवल अपनी अध्यात्मिक उन्नति को खो चूका था अपितु इन कार्यों को करने में उसका सारा सामर्थ्य, उसके सारे संसाधन व्यय हो जाते थे। अगर सोमनाथ के मंदिर में टनों सोने को एकत्र करने के स्थान पर, उस धन को क्षात्र शक्ति को बढ़ाने में व्यय करते तो न केवल उससे आक्रमणकारियों का विनाश कर देते बल्कि हिन्दू जाति का इतिहास भी कलंकित होने से बच जाता। अगर वीर शिवाजी को अपने आपको क्षत्रिय घोषित करने में उस समय के लगभग पञ्च करोड़ को खर्च न पड़ता तो उस धन से मुगलों से संघर्ष करने में लगता।

सिख गुरु साहिबान ने हिंदुयों की इस कमजोरी को पहचान लिया था इसलिए उन्होंने व्यर्थ के अंधविश्वास पाखंड से मुक्ति दिलाकर देश जाति और धर्म कि रक्षा के लिए तप करने का उपदेश दिया था। परन्तु आज सिख संगत फिर से उसी राह पर चल पड़ी हैं।

सिख लेखक डॉ महीप सिंह के अनुसार गुरुद्वारा में जाकर केवल गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे शीश नवाने से कुछ भी नहीं होगा। जब तक गुरु साहिबान की शिक्षा को जीवन में नहीं उतारा जायेगा तब तक शीश नवाना केवल मूर्ति पूजा के सामान अन्धविश्वास हैं। आज सिख समाज हिंदुयों की भांति गुरुद्वारों पर सोने की परत चढाने , हर वर्ष मार्बल लगाने रुपी अंधविश्वास में ही सबसे ज्यादा धन का व्यय कर रहा हैं। देश के लिए सिख नौजवानों को सिख गुरुओं की भांति तैयार करना उसका मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।

गुरु साहिबान ने स्पष्ट रूप से धुम्रपान, मांसाहार आदि के लिए मना किया हैं ,जिसका अर्थ हैं की शराब, अफीम, चरस, सुल्फा, बुखी आदि तमाम नशे का निषेध हैं क्यूंकि नशे से न केवल शरीर खोखला हो जाता हैं बल्कि उसके साथ साथ मनुष्य की बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती हैं और ऐसा व्यक्ति समाज के लिए कल्याणकारी नहीं अपितु विनाशकारी बन जाता हैं। उस काल में कहीं गयी यह बात आज भी कितनी सार्थक और प्रभावशाली हैं। आज सिख समाज के लिए यह सबसे बड़े चिंता का विषय भी बन चूका हैं की उसके नौजवान पतन के मार्ग पर जा रहे हैं। ऐसी शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार कौम धर्म, देश और जाति का क्या ही भला कर सकती हैं?

जब एक विचार, एक आचार , एक व्यवहार नहीं होगा तब तक एकता नहीं होगी, संगठन नहीं होगा। जब तक संगठित नहीं होगे तब देश के समक्ष आने वाली विपत्तियों का सामना कैसे होगा? खेद हैं कि सिख गुरुओं द्वारा जो धार्मिक और सामाजिक क्रांति का सन्देश दिया गया था उसे सिख समाज व्यवहार में नहीं ला रहा हैं। जब तक गुरुओं कि बात को जीवन का अंग नहीं बनाया जायेगा तब तक किसी का भी उद्धार नहीं हो सकता।

जिज्ञासु - आज गुरु नानक देव के प्रकाश उत्सव पर आपने गुरु साहिबान के उपदेशों को अत्यंत सरल रूप प्रस्तुत किया जिनकी आज के दूषित वातावरण में कितनी आवश्यकता हैं यह बताकर आपने सबका भला किया हैं, आपका अत्यंत धन्यवाद।



डॉ विवेक आर्य

3 comments:

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  2. very impresive sir..........this castism has always been in culture of india and sikhism was formed to end this all also it could for some years and made a success but now i came to know after "satyamev jayate" that 'jatts' and 'kamboj' sikhs refer 'majhbi sikhs' as chooras and alsso have made different 'lunger' for them. they are not allowed to enter in same gurdwara where upper castes go. and i think mainly jatts are responsible for that because if you count both converted and original sikhs the number in the world is approx. 26 million.(in punjab and rest of india and world) and almost 65% of these whole sikhs are jatts due to this you may havee seen jatt tittled punjabi movies.
    so the conclusion is that nither the castes should be there in hinduism(no hindus and castes, just ARYA) nor in sikhism(as per founding principles) just SIKH, SINGH and KAUR.
    but lets see when this and reservation ends because this disgusting thing is not only in hindus but also in indian muslims as well.

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  3. एक विचार, एक आचार , एक व्यवहार देखने को बस अब वही मिलता है जहाँ से कुछ लूटने के लिये किसी खजाने का दरवाजा खुलता है ।

    बहुत सुंदर आलेख ।

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