Monday, January 27, 2014

टीपू सुल्तान- एक जिहादी गिद्ध



२६ जनवरी के महान दिवस के अवसर पर जब पर जब सम्पूर्ण देश अपनी आन,बान और शान का प्रदर्शन समस्त विश्व के समक्ष करता हैं इस अवसर पर भी हमारे देश के राजनेता मुस्लिम वोटो के लालच में अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकने  नहीं हटे। कर्नाटक सरकार द्वारा जिसने हाल ही में गौ हत्या पर लगे प्रतिबन्ध को अपने राज्य से हटाया हैं इस अवसर पर टीपू सुल्तान को देश भक्त और न्याय प्रिय , प्रजापालक  आदि दिखाने के लिए झाँकी निकाली गई। यह कार्य सोची समझी साजिश हैं जिसका मुख्य उद्देश्य सत्य इतिहास से सामान्य जनता को अनभिज्ञ कर उन्हें सेक्युलर गधे कि सवारी करवाना हैं।
सत्य यह हैं कि कुर्ग और मलाबार के हिन्दुओं पर टीपू के अत्याचार और यातानाए उन क्षेत्रों के इतिहास का सबसे रक्तरंजित पृष्ठ हैं। इतिहासज्ञों (मार्किसस्टों) की एक पूरी नस्ल ने टीपू सुल्तान को और उसके द्वारा किये गये बर्बर अत्याचारों को पूर्णतः दबा कर, छिपा कर, एक जिहादी आतताई को सैक्यूलरवादी, राष्ट्रवादी, देवतातुल्य, प्रमाणित व प्रस्तुत करने में कोई भी, कैसी भी कमी नहीं रखी है। सत्य यह है कि बहुतांश में ये इतिहासकार अपने इस कुटिल उद्‌देश्य में कभी भी सफल नहीं हो सकते क्यूंकि सत्य का सूर्य कुछ काल के लिए बादलों में छिप तो सकता हैं मगर बादलों को अपनी किरणों से चीर कर वह पहले से भी अधिक रोशनी से चमकता हैं।
इतिहास के प्रमाणों द्वारा टीपू कि असलियत को जानिये
टीपू के पत्र
टीपू द्वारा लिखित कुछ पत्रों, संदेशों, और सूचनाओं, के कुछ अंश निम्नांकित हैं। विखयात इतिहासज्ञ, सरदार पाणिक्कर, ने लन्दन के इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी से इन सन्देशों, सूचनाओं व पत्रों के मूलों को खोजा था।
(i) अब्दुल खादर को लिखित पत्र २२ मार्च १७८८
“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए।”
(भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त १९२३)
(ii) कालीकट के अपने सेना नायक को लिखित पत्र दिनांक १४ दिसम्बर १७८८
”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।”
(उसी पुस्तक में)
(iii) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक १९ जनवरी १७९०)
"क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है।  चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पापि रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं, यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।”
(उसी पुस्तक में)
टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातना के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।
"जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाम में सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ - सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।”
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड २ पृष्ठ १२०)
मैसूर के तृतीय युद्ध (१७९२) के पूर्व से लेकर निरन्तर १७९८ तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ १४१-१४७) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है। उस पत्र व्यवहार के कुछ का अनुवाद नीचे दिया गया हैं।
टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र
(i) "महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद (धर्म युद्ध) है। इस युक्ति का इस भूमि पर परिणाम यह है कि अल्लाह, इस भूमि के मध्य, मुहम्मदीय उपनिवेश के चिह्न की रक्षा करता रहता है, ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए अविश्वासियों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है।”
(ii) "टीपू से जमनशाह को, पत्र दिनांक शहबान का सातवाँ १२११ हिजरी (तदनुसार ५ फरवरी १७९७): ”….इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चित तक, सूर्य के स्वर्ग के केन्द्र में होने के कारण, सभी को ज्ञात हैं। मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से एक मत हो हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध धर्म युद्ध क्रियान्वित करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए। इस क्षेत्र के पन्थ के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर सदैव एकत्र होकर इन शब्दों में प्रार्थना करते हैं। ”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने पन्थ का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो। उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके शिरों को दण्ड दो।”
मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाए स्वीकार कर लेगा और पवित्र उद्‌देश्य की गुणवत्ता के कारण हमारे सामूहिक प्रयासों को उस उद्‌देश्य के लिए फलीभूत कर देगा। और इन शब्दों के, ”तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होगी”, तेरे प्रभाव से हम विजयी और सफल होंगे।
लेख
टीपू की बहुचर्चित तलवार पर फारसी भाषा में निम्नांकित शब्द लिखे थे- "मेरी चमकती तलवार अविश्वासियों के विनाश के लिए आकाश की कड़कड़ाती बिजली है। तू हमारा मालिक है, हमारी मदद कर उन लोगों के विरुद्ध जो अविश्वासी हैं। हे मालिक ! जो मुहम्मद के मत को विकसित करता है उसे विजयी बना। जो मुहम्मद के मत को नहीं मानता उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर और जो ऐसी मनोवृत्ति रखते हैं, हमें उनसे दूर रख। अल्लाह मालिक बड़ी विजय में तेरी मदद करे, हे मुहम्मद!”
(हिस्ट्री ऑफ मैसूर सी.एच. राउ खण्ड ३, पृष्ठ १०७३)
ब्रिटिश म्यूजियम लण्डल का जर्नल
हमारे सैक्यूलरिस्ट इतिहासज्ञों की रुचि, प्रसन्नता व ज्ञान के लिए श्री रंग पटनम दुर्ग में प्राप्त टीपू का एक शिला लेख पर्याप्त महत्वपूर्ण है। शिलालेख के शब्द इस प्रकार हैं- " हे सर्वशक्तिमान अल्लाह! गैर-मुसलमानों के समस्त समुदाय को समाप्त कर दे। उनकी सारी जाति को बिखरा दो, उनके पैरों को लड़खड़ा दो अस्थिर कर दो और उनकी बुद्धियों को फेर दो, मृत्यु को उनके निकट ला दो (उन्हें शीघ्र ही मार दो), उनके पोषण के साधनों को समाप्त कर दो। उनकी जिन्दगी के दिनों को कम कर दो। उनके शरीर सदैव उनकी चिंता के विषय बने रहें, उनके नेत्रों की दृष्टि छी लो, उनके मुँह (चेहरे) काले कर दो, उनकी वाणी को (जीभ को), बोलने के अंग को, नष्ट कर दो! उन्हें शिदौद की भाँति कत्ल कर दो जैसे फ़रोहा को डुबोया था, उन्हें भी डुबो दो, और भयंकरतम क्रोध के साथ उनसे मिलो यानी कि उन पर अपार क्रोध करो। हे बदला लेने वाले! हे संसार के मालिक पिता! मैं उदास हूँ! हारा हुआ हूँ,! मुझे अपनी मदद दो।”
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १०७४)
टीपू का जीवन चरित्र
टीपू की फारसी में लिखी, ‘सुल्तान-उत-तवारीख’ और ‘तारीख-ई-खुदादादी’ नाम वाली दो जीवनयिाँ हैं। बाद वाली पहली जीवनी का लगभग यथावत (हूबहू) प्रतिरूप नकल है। ये दोनों ही जीवनियाँ लन्दन की इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी में एम.एस. एस. क्र. ५२१ और २९९ क्रमानुसार रखी हुई हैं। इन दोनों जीवनयों में हिन्दुओं पर उसके द्वारा ढाये अत्याचारों, और दी गई यातनाओं, का विस्तृत वर्णन टीपू ने किया है। यहाँ तक कि मोहिब्बुल हसन, जिसने अपनी पुस्तक, हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान, टीपू को एक समझदार, उदार, और सैक्यूलर शासक चित्रित व प्रस्तुत करने में कोई कैसी भी कमी नहीं रखी थी, को भी स्वीकार करना पड़ा था कि ”तारीख यानी कि टीपू की जीवनियों के पढ़ने के बाद टीपू का जो चित्र उभरता है वह एक ऐसे धर्मान्ध, पन्थ के लिए मतवाले, या पागल, का है जो मुस्लिमेतर लोगों के वध और उनके इस्लाम में बलात परिवर्तन करान में ही सदैव लिप्त रहा आया।”
(हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान, मोहिब्बुल हसन, पृष्ठ ३५७)
प्रत्यक्ष दर्शियों के वर्णन
इस्लाम के प्रोत्साहन के लिए टीपू द्वारा व्यवहार में लाये अत्याचारों और यातनाओं के प्रत्यक्ष दर्शियों में से एक पुर्तगाली यात्री और इतिहासकार, फ्रा बारटोलोमाको है। उसने जो कुछ मलाबार में, १७९० में, देखा उसे अपनी पुस्तक, ‘वौयेज टू ईस्ट इण्डीज’ में लिख दिया था- ”कालीकट में अधिकांश आदमियों और औरतों को फाँसी पर लटका दिया जाता था। पहले माताओं को उनके बच्चों को उनकी गर्दनों से बाँधकर लटकाकर फाँसी दी जाती थी। उस बर्बर टीपू द्वारा नंगे (वस्त्रहीन) हिन्दुओं और ईसाई लोगों को हाथियों की टांगों से बँधवा दिया जाता था और हाथियों को तब तक घुमाया जाता था दौड़ाया जाता था जब तक कि उन सर्वथा असहाय निरीह विपत्तिग्रस्त प्राणियों के शरीरों के चिथड़े-चिथड़े नहीं हो जाते थे। मन्दिरों और गिरिजों में आग लगाने, खण्डित करने, और ध्वंस करने के आदेश दिये जाते थे। यातनाओं का उपर्लिखित रूपान्तर टीपू की सेना से बच भागने वालेऔर वाराप्पुझा पहुँच पाने वाले अभागे विपत्तिग्रस्त व्यक्तियों से सुन वृत्तों के आधार पर था… मैंने स्वंय अनेकों ऐसे विपत्ति ग्रस्त व्यक्तियों को वाराप्पुझा नहीं को नाव द्वारा पार कर जोने के लिए सहयोग किया था।”
(वौयेज टू ईस्ट इण्डीजः फ्रा बारटोलोमाको पृष्ठ १४१-१४२)
टीपू द्वारा मन्दिरों का विध्वंस
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि "टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे।”
के.पी. पद्‌मानाभ मैनन द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ कोचीन और श्रीधरन मैनन द्वारा लिखित, हिस्ट्री ऑफ केरल’ उन भग्न, नष्ट किये गये, मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं- "चिन्गम महीना ९५२ मलयालम ऐरा तदुनसार अगस्त १७८६ में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर ओर करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया। इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा खण्डित किया गया और नष्ट किया गया।” ”अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में से कुछ, जिन्हें लूटा गया, और नष्ट किया गया, था, वे थे- त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्‌, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, बैलूर शिवा मन्दिर आदि।”
”टीपू की व्यक्तिगत डायरी के अनुसार चिराकुल राजा ने टीपू सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए, टीपू सुल्तान को चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु टीपू ने उत्तर दिया था, ”यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा”
(फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल : सरदार के.एम. पाणिक्कर)
टीपू द्वारा केरल की विजय के प्रलयंकारी भयावह परिणामों का सविस्तार सजीव वर्णन, ‘गजैटियर ऑफ केरल के सम्पादक और विखयात इतिहासकार ए. श्रीधर मैनन द्वारा किया गया है। उसके अनुसार, ”हिन्दू लोग, विशेष कर नायर लोग और सरदार लोग जिन्होंने इस्लामी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया था, टीपू के क्रोध के प्रमुखा भाजन बन गये थे। सैकड़ों नायर महिलाओं और बच्चों को भगा लिया गया और श्री रंग पटनम ले जाया गया या डचों के हाथ दास के रूप में बेच दिया गया था। हजारों ब्राह्मणों, क्षत्रियों और हिन्दुओं के अन्य सम्माननीय वर्गों के लोगों को बलात इस्लाम में धर्मान्तरित कर दिया गया था या उनके पैतृक घरों से भगा दिया गया था।”
यह लेख पढ़ कर आप स्वयं विचार करे कि आप टीपू को एक जिहादी गिद्ध से अधिक क्या मानना चाहेगे?
कृण्वन्तो विश्वमार्यम !
डॉ विवेक आर्य

2 comments:

  1. If Hitler was wrong ; y these muslims r not considered as wrong. ALL THE MUSLIMS ARE NOT TERRORIST, ITS TRUE; BUT 99% OF TERRORISTS ARE MUSLIMS.ITS A WORLD KNOWN FACT

    ReplyDelete
  2. I was not aware of these facts earlier.... thanks for share

    ReplyDelete