Monday, July 18, 2016

बून्द बून्द से सागर बनता है!



बून्द बून्द से सागर बनता है!

एक आदमी समुद्र तट पर चल रहा था। उसने देखा कि कुछ दूरी पर एक युवक ने रेत पर झुककर कुछ उठाया और आहिस्ता से उसे पानी में फेंक दिया। उसके नज़दीकपहुँचने पर आदमी ने उससे पूछा – “और भाई, क्या कर रहे हो?”

युवक ने जवाब दिया – “मैं इन मछलियों को समुद्र में फेंक रहा हूँ।”

“लेकिन इन्हें पानी में फेंकने की क्या ज़रूरत है?”- आदमी बोला।

युवक ने कहा – “ज्वार का पानी उतर रहा है और सूरज की गर्मी बढ़ रही है।अगर मैं इन्हें वापस पानी में नहीं फेंकूंगा तो ये मर जाएँगी”।

आदमी ने देखा कि समुद्रतट पर दूर-दूर तक मछलियाँ बिखरी पड़ी थीं। वह बोला – “इस मीलों लंबे समुद्रतट पर न जाने कितनी मछलियाँ पड़ी हुई हैं। इस तरह कुछेक को पानी में वापस डाल देने से तुम्हें क्या मिल जाएगा? इससे क्या फर्क पड़ जायेगा?”

युवक ने शान्ति से आदमी की बात सुनी, फ़िर उसने रेत पर झुककर एक और मछली उठाई और उसे आहिस्ता से पानी में फेंककर वह बोला :

आपको इससे कुछ मिले न मिले
मुझे इससे कुछ मिले न मिले
दुनिया को इससे कुछ मिले न मिले
लेकिन “इस मछली को सब कुछ मिल जाएगा”।

एक छोटा सा प्रयास अनेकों का भविष्य सदा के लिए बदल सकता है।

वीर शिवा जी, महाराणा प्रताप और बन्दा बैरागी जैसे महान क्षत्रियों का जीवन भी कुछ ऐसा ही था। शिवाजी ने छोटे छोटे पहाड़ी किलों को जीत कर बीजापुर रियासत को हिला दिया।  शिवाजी का प्रताप इतना बढ़ा कि एक दो शताब्दी पुरानी मुगलिया सल्तनत के शासक औरंगज़ेब की रातों की नींद उड़ गई। अपनी झेप मिटाने के लिए औरंगज़ेब ने शिवाजी को पहाड़ी चूहा तक कह डाला मगर वीर शिवाजी छत्रपति शिवाजी बन हिन्दुओं के ह्रदय सम्राट बन गए।

शिवाजी का प्रयास आरम्भ में छोटा था मगर समय के साथ उनके महान पुरुषार्थ ने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई।

जब सारा राजपुताना अकबर की आधीनता स्वीकार कर रहा था। तब स्वाभिमानी और वीर महाराणा प्रताप से यह अत्याचार सहा न गया। उन्होंने सोने के बर्तनों में पान की पिक थूकने वाले मुगलों के आधीनता और महलों के विश्राम को त्यागकर जंगल में पत्थर के बिस्तर और घास की रोटी खाना स्वीकार किया। ,महाराणा के पुरुषार्थ से चित्तौड़गढ़ एक बार फिर से स्वतंत्र हुआ।

महाराणा का प्रयास आरम्भ में छोटा था। मगर समय के साथ उनके महान पुरुषार्थ ने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई।

वीर बन्दा बैरागी ने जब गुरु गोबिंद सिंह के मुख से हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को सुना तो उन्होंने महंत चोला छोड़ लौह कवच धारण कर लिया। अपनी तलवार से गुरु पुत्रों की हत्या का न केवल बदला लिया अपितु पूरे उत्तर भारत में इस्लामिक आतंक की लहर को रोक दिया। वीर बैरागी के पुरुषार्थ से हिन्दुओं को राहत की साँस मिली।

वीर बैरागी का प्रयास आरम्भ में छोटा था। मगर समय के साथ उनके महान पुरुषार्थ ने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई।

1939 में आर्यसमाज ने हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध सत्याग्रह किया। हैदराबाद रियासत में हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का शरिया के नाम पर अतिक्रमण किया जा रहा था। हिन्दुओं को मंदिर बनाने, शोभा यात्रा निकालने, व्रत-त्यौहार, शादी करने पर प्रतिबन्ध था। ऐसे में आर्यसमाज द्वारा इस अत्याचार के विरुद्ध आंदोलन किया गया। सभी ने कहा आर्यसमाजियों का दिमाग ख़राब हो गया है जो संसार की सबसे धनी रियासत से टकरा रहे है। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने भी आर्यसमाज एक आंदोलन का विरोध किया। अंत में विजय आर्यसमाज की हुई। आर्यसमाज के प्रयासों से हैदराबाद आगे चलकर भारत का भाग बना।

इतिहास में ऐसे अनेक उदहारण आपको मिल जायेंगे। जब एक छोटा सा प्रयास इतिहास की दिशा बदल देता है।

आज इस्लामिक आतंकवाद विश्व के समस्त देशों को चुनौती दे रहा है। भारत भी उन देशों में से एक है। भारत के कुछ युवा ISIS में शामिल हो चूके है। वह दिन दूर नहीं जब इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे।

ऐसे में हर राष्ट्रवादी हिन्दू का प्रयास यही होना चाहिए कि इस आतंकवाद का सामना किया जाना चाहिए।  प्रयास चाहे वह छोटा ही क्यों न हो मगर उसकी अपनी महत्ता है।

 इंटरनेट, सोशल मीडिया, सामान्य चर्चा, स्कूल, कॉलेज, व्यवसाय स्थान, सफर करते जहाँ भी मौका मिले इस्लामिक आतंकवाद की भर्त्सना अवश्य करें। इससे न केवल जन चेतना का प्रचार होगा अपितु अनेकों का जीवन भी बदलेगा। वह दिन भी आयेगा जब देश के मुस्लिम भाई भी ISIS के विरुद्ध आवाज बुलंद करेंगे।

(जनहित में जारी)

डॉ विवेक आर्य

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