Monday, July 31, 2017

विश्व के पुस्तकालयों में सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है



विश्व के पुस्तकालयों में सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है । वैदिक परम्परा के अनुसार आज से लगभग १ अरब , ९६ करोड़ , ८ लाख , ५३ हज़ार पूर्व जब इस पृथ्वी पर मनुष्य की सर्वप्रथम उत्पत्ति हुई तब ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि ,वायु , आदित्य और अंगिरा को क्रमशः ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया । इनहि ऋषियों ने अन्य मनुष्यों को इन वेदों का ज्ञान दिया और तब से आज तक गुरु परम्परा से इन वेदों का आदान-प्रदान चलता चला आ रहा है । बहुत लम्बे काल तब वेद श्रवण द्वारा ही ग्रहण किए जाते रहे इस कारण इनका एक नाम श्रुतिभी है ; बाद में इन्हें पुस्तक रूप में भी लिख लिया गया ।
ऋग्वेद का मुख्य विषय पदार्थज्ञानहै । अर्थात इसमें मुख्य रूप से संसार में विद्यमान पदार्थो का स्वरूप बताया गया है । यजुर्वेद में कर्मों के अनुष्ठान को , सामवेद में ईश्वर की ’भक्ति उपासना’ के स्वरूप को तथा अथर्ववेद में विभिन्न प्रकार के ‘विज्ञान’ को मुख्य रूप से बताया गया है । ऋग्वेद के मंत्रो की संख्या १०५५२ , यजुर्वेद की १९७५ , सामवेद की १८७५ तथा अथर्ववेद की ५९७७ है , चारों वेदों में कुल २०३७९ मंत्र है ।
इन वेदों का एक-एक उपवेद भी है ।
ऋग्वेद के उपवेद का नाम ‘ आयुर्वेद ’है , जिसमें स्वास्थ्य , स्वस्थ रहने के उपाय , रोग , रोगों के कारण ,औषधियों तथा चिकित्सा का मुख्य रूप से वर्णन किया गया है ।
यजुर्वेद के उपवेद का नाम ‘ धनुर्वेद ‘है , जिसमे सेना , हथियार , युद्ध काल के विषय का वर्णन है ।
सामवेद के उपवेद का नाम ‘ गन्धर्ववेद ‘है , जिसमें गायन ,वादन , नर्तन आदि विषयों का वर्णन किया गया है ।
अथर्ववेद के उपवेद का नाम ‘ अर्थवेद ‘है जिसमे व्यापार , अर्थव्यवस्था आदि विषयों का वर्णन है ।
ऋषियों ने वेदों के भाष्य व्याख्या रूप में सर्वप्रथम जिन ग्रन्थों की रचना की उन ग्रंथो को ‘ ब्राह्मण ग्रंथ ‘ कहते है , जो ऋग्वेद का ऐतरेय , यजुर्वेद का शतपथ , सामवेद का ताण्ड्यतथा अथर्ववेद का गोपथ नाम से प्रसिद्ध है । जिन ग्रंथो में ऋषियों ने वेदों में वर्णित ब्रह्मविद्या से संबंधित आध्यात्मिक तत्वों यथा ब्रह्म , जीव , मन , संस्कार , जप , स्वाध्याय , तपस्या , ध्यान , समाधि आदि विषयों का आलंकारिक कथाओं के साथ सरल रूप से वर्णन किया है । उनका नाम ‘ उपनिषद ‘ है । इन उपनिषदों में ईशोपनिषद् आदि १० उपनिषदें प्रमुख है ।
ऋषियों ने जिन ग्रंथो में वेदों के दार्शनिक तत्वों की विस्तार से एवं शंका समाधानपूर्वक विवेचना की है , उनका नाम ‘उपांग’ या दर्शनशास्त्रहै ।
ये संख्या में ६ है , जिनके नाम मीमांसा,वेदान्त,न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग है ।
जैमिनि ऋषिकृत मीमांसा-दर्शन में धर्म , कर्म यज्ञादि का वर्णन है ,
व्यास ऋषिकृत वेदान्त-दर्शन में ब्रह्म (ईश्वर) का वर्णन है ,
गौतम ऋषिकृत न्याय-दर्शन मे तर्क , प्रमाण , व्यवहार व मुक्ति का वर्णन है ,
कणाद ऋषिकृत वैशेषिक-दर्शन मे ज्ञान-विज्ञान का वर्णन है ,
कपिल ऋषिकृत सांख्य-दर्शन मे प्रकृति , पुरुष (=ईश्वर व जीव ) का वर्णन है ,
पतंजलि ऋषिकृत योग-दर्शन में योग-साधना , ध्यान , समाधि आदि का वर्णन है ।
वेद मंत्रो के गंभीर व सूक्ष्म अर्थो को स्पष्टता से समझने के लिए ऋषियों ने ६ अंगों की रचना की , जिन्हें ‘वेदांग’ कहा जाता है ।
ये हैं शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त ,छन्द तथा ज्योतिष ।
शिक्षा ग्रंथ में संस्कृत भाषा के अक्षरों का वर्णन , उनकी संख्या , प्रकार ,उच्चारण-स्थान –प्रयत्न आदि के उल्लेख सहित किया है ।
कल्प ग्रंथ में व्यवहार,सुनीति,धर्माचार आदि बातों का वर्णन है ।
व्याकरण ग्रंथ में शब्दों की रचना , धातु , प्रत्यय तथा कोन-सा –शब्द किन –किन अर्थों मे प्रयुक्त होता है , इन बातों का उल्लेख है ,
निरुक्त ग्रंथ में वेद मंत्रो के शब्दों का अर्थ किस विधि से किया जाए , इन बातों का निर्देश किया गया है ।
छन्द ग्रंथ में श्लोकों की रचना तथा गान कला का वर्णन किया है ।
ज्योतिष ग्रंथ में गणित आदि विद्याओं तथा भूगोल-खगोल की स्थिति-गति का वर्णन है ।
इनके अतिरिक्त वैदिक साहित्य के अंतर्गत ऋषियों ने ‘ स्मृतिग्रंथ‘ ‘आरण्यक ग्रंथ’ ‘सूत्रग्रंथ’ आदि भी बनाये थे । ऋषियों ने इन ग्रंथो की रचना मानव मात्र को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराने के लिए की थी । इन में पारिवारिक , सामाजिक ,धार्मिक तथा राजनैतिक नियमों का विधान है । समय-समय पर इनमें मिलावट होती रही है , वर्तमान में उपलब्ध ‘मनुस्मृति’ में भी अनेक मिलावट है , जिसे वैदिक विद्वानों ने ढूँढकर पृथक भी किया है ।
वैदिक धर्म से संबंधित , आरण्यक , प्रातिशाख्य , सूत्र ग्रंथ , पुराण , महाभारत आदि अनेक ग्रंथ भी उपलब्ध हैं , किन्तु वे मिलावट आदि अनेक प्रकार के दोषों से युक्त होने के कारण पूर्व प्रामाणिक नहीं है ।
आभार:- आचार्य ज्ञानेश्वरार्य , दार्शनिक निबंध

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