Tuesday, October 3, 2017

धर्म के नाम पर पशुवध और आर्यसमाज का पुरुषार्थ



धर्म के नाम पर पशुवध और आर्यसमाज का पुरुषार्थ

दशहरे के पर्व पर एक ओर हिन्दू समाज मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम जी द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बनाया जाता है। जबकि दूसरी ओर हिन्दू समाज द्वारा ही भारत में अनेक स्थानों पर बेरहमी से निरीह बकरों की गर्दनों पर तलवार चलाई गई।

आर्यसमाज आरम्भ से ही इस क्रूर प्रथा रूपी अन्धविश्वास का विरोध करता रहा है।

स्वामी दयानंद द्वारा सबसे पहले ऋग्वेद का भाष्य प्रारम्भ किया गया मगर कुछ शुभचिंतकों के अनुरोध पर की महीधर कृत यजुर्वेद भाष्य में यज्ञ रूपी कर्म कांड में पशु बलि का स्पष्ट समर्थन है। स्वामी जी ने पहले यजुर्वेद का भाष्य सम्पन्न किया जिससे इस भ्रान्ति का निराकरण हो जाये। स्वामी जी के यजुर्वेद भाष्य का उन्हीं के जीवन काल में प्रभाव दिखना आरम्भ हो गया था। तब राजस्थान की जोधपुर रियासत में सोम याग किया गया था। जिसमें दो बकरों की बलि तो दी गई। मगर राजपूत राजाओं ने उसके मांस को प्रसाद के रूप में ग्रहण न किया। ऐसा सदियों के बाद प्रथम बार हुआ था जब मांस को ग्रहण नहीं किया गया था। परिवर्तन आरम्भ हो गया था।

उड़ीसा में आर्य प्रचारक श्री वत्स पंडा जी का पशुबलि करने का विरोध अनोखा था। वे अपने एक शिष्य के गले में रस्सी बांध कर उसे बकरा बनाकर वध स्थल पर ले गए और यह कहा की पहले मेरे बकरे की गर्दन काटो तभी और बकरों को काटना। अन्यथा मेरे साथ शास्त्रार्थ कर लो जो जीता उसी का मत सर्वमान्य होगा। उनका उद्देश्य जनचेतना लाना था। उनके प्रयास से जनचेतना हुई। अनेक बकरे कटने से बच गए।

कोलकाता के गोविन्द भवन से कलकत्ते की काली और गुवहाटी की कामाख्या के मंदिर में पशु बलि के विरुद्ध जनांदोलन चलाया गया था। आर्यसमाज के विद्वान नरदेव जी विद्यालंकार जी ने श्रोत्र सूत्र एवं स्मृति ग्रंथों के आधार पर एक पुस्तक पशु बलि के विरुद्ध प्रकाशित कर चेतना लाने का प्रयास किया था।

गुरुकुल कांगड़ी के प्रकांड विद्वान पंडित विश्वनाथ जी वेदालंकार द्वारा यज्ञ एवं पशुवध मीमांसा नामक ग्रन्थ लिखकर पशु वध के विरुद्ध लोगों को जागृत किया था।

आर्य प्रतिनिधि सभा सिंध के ताराचंद गाजरा द्वारा आंगल भाषा में लिखित पशु वध क्यों अवैदिक है एक लेख लिखा गया था। इस लेख के लिए उन्हें प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ताराचंद जी ने सिंध प्रान्त में मांसाहार के विरुद्ध व्यापक प्रचार किया था। जिसके वांछित परिणाम भी निकले थे।

केरल के विद्वान स्वर्गीय नरेंदर भूषण जी केरल में सोमयाग में बलि देने के विरुद्ध दिल्ली आकर श्री रामगोपाल शालवाले के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले और यज्ञ में पशु वध के विरुद्ध सरकारी रूप से निषेधाज्ञा पारित करने का अनुरोध किया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने तत्काल प्रभाव से केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरन को दूरभाष पर सूचित कर याग में बलि देने के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा सरकारी आदेश लागु करने को कहा था। जिस पर अमल होने से अनेक पशुओं की रक्षा हुई थी।

यह आर्यसमाज की चेतना का ही परिणाम था कि गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा द्वारा जब मथुरा में सोमयाग किया गया। तब जीवित पशु के स्थान पर चावल से बनाई गई पशु की आकृति को प्रतिलिपि रूप में काटा गया था। जीवित पशु को काटने की उनकी भी हिम्मत न हुई थी।
उत्तराखंड में आर्य प्रचारकों द्वारा दशहरा पर व्यापक रूप से पशुबलि देने की कुप्रथा और मांसाहार का विरोध कर जनचेतना लाने का प्रयास किया गया था।

आर्यसमाज के इतिहास में ऐसे अनेक उदहारण मिल जायगे जिसमें निरीह पशुओं की रक्षा करने के लिए प्रचारकों ने भरपूर प्रयास किये हैं। हाल ही में हिमाचल सरकार द्वारा कुल्लू के दशहरा में पशु वध पर प्रतिबन्ध सराहनीय कदम है।

आर्यसमाज का जनचेतना अभियान अविरल चलता रहे। यही ईश्वर से प्रार्थना है।

डॉ विवेक आर्य

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