Thursday, November 23, 2017

बहकावे में न आये। अपना दिमाग लगाये।



बहकावे में न आये। अपना दिमाग लगाये।

एक पुरानी कहानी आज स्मरण हो आई। एक पंडित को एक गौ दान में मिली। वह गौ लेकर अपने घर को चल दिया। रास्ते में चार चोरों ने उस पंडित से वह गौ छीनने की योजना बनाई। चारों अलग अलग कुछ दूरी पर छिप गए। पहला चोर ग्रामीण का वेश बनाकर पंडित जी से नमस्ते करते हुए बोला पंडित जी "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। कैसा मुर्ख व्यक्ति है। एक गौ और बकरी में अंतर करना भी नहीं जानता। पंडित जी नमस्ते का उत्तर देकर बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए आगे चल दिए। आगे दूसरा चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। पहले वाला भी गौ को बकरी कह रहा था। यह भी गौ को बकरी कह रहा है। दोनों मिलकर मुझे मुर्ख बनाने का प्रयास कर रहे है। मैं इनके बहकावे में नहीं आने वाला। आगे अगला तीसरा चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। अब तो मुझे भी यह लगने लगा है कि यह गौ नहीं बकरी है। मगर मैं अभी इसकी बात पर विश्वास नहीं करूँगा। अगर आगे कोई इस पशु को बकरी कहेगा तो मैं मान लूंगा। आगे अंतिम चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी से रहा न गया। उन्होंने उदास मन से यह निर्णय लिया की आज उन्हें ठगा गया है। गौ कहकर बकरी दान दे दी गई है। पंडित जी ने भ्रम के चलते उस गौ को बकरी समझकर वही त्याग दिया और खाली हाथ आगे चल दिए। अंतिम चोर गौ को लेकर अपने मित्रों से जा मिला और खूब जोर से सब पंडित की मूर्खता पर खूब हँसे।

मित्रों यह खेल हिन्दू समाज के साथ 1947 के बाद से आज भी निरंतर खेला जा रहा है। 1200 वर्ष के इस्लामिक अत्याचारों, मुग़लों और अंग्रेजों के अत्याचारी राज के पश्चात देश के दो टुकड़े कर हमें आज़ादी मिली। उसके बार भी हिन्दुओं को अपना शासन नहीं मिला। सेकुलरता के नाम पर अल्पसंख्यक मुसलमानों को प्रोत्साहन दिया गया। हिन्दुओं को हिन्दू कोड बिल में बांध दिया गया और मुसलमानों को दर्जन बच्चे करने की खुली छूट दी गई। 100 करोड़ हिन्दुओं के लिए सरकार द्वारा राम-मंदिर बनाना सुलभ नहीं है मगर हज हाउस बनाना सुलभ किया गया। लव जिहाद को सेकुलरता का प्रतीक बताया गया। संविधान ऐसा बनाया गया कि हर गैर हिन्दू अपने मत का प्रचार करे तो किसी को कोई दिक्कत नहीं मगर हिन्दू समाज रक्षात्मक रूप से अपनी मान्यता का प्रचार करे तो उसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दमन बताया गया। गौरक्षा करना गुण्डई और गाय की कुर्बानी मज़हबी आस्था बताया गया। हमारे धर्मग्रन्थ वेद और धर्मशास्त्र पिछड़े बताये गए जबकि सेमेटिक मतों के ग्रंथों को वैज्ञानिक और आधुनिक बताया गया। रामायण और महाभारत को मिथक और विदेशियों के ग्रंथों को सत्य बताया गया। हमारे पूर्वजों के महान और प्रेरणादायक इतिहास को भुला दिया गया और अकबर महान, गौरी महान और ग़जनी महान बताया गया। विदेशी सभ्यता, विदेशी पहनावा,विदेशी सोच, विदेशी खान-पान, विदेशी आचार-विचार को सभ्य और स्वदेशी चिंतन, स्वदेशी खान-पान, स्वदेशी पहनावा आदि को असभ्य दिखाया गया।  चोटी-जनेऊ और तिलक को पिछड़ा हुआ जबकि टोपी और क्रॉस पहनने को सभ्य दिखाया गया। संस्कृत भाषा को मृत और हिंदी को गवारों की भाषा बताया गया जबकि अंग्रेजी को सभ्य समाज की भाषा बताया गया। हवन-यज्ञ से लेकर मृतक के दाह संस्कार को प्रदुषण और जमीन में गाड़ने को वैज्ञानिक बताया गया। आयुर्वेद को जादू-टोना बताया गया जबकि ईसाईयों की प्रार्थना से चंगाई और मुस्लिम पीरों की कब्र पूजने को चमत्कार बताया गया।

झूठ पर झूठ, झूठ पर झूठ इतने बोले गए कि हिन्दू समाज की पिछले 70 सालों में पैदा हुई पीढ़ियां इन्हीं असत्य कथनों को सत्य मानने लग गई। अपने आपको हिन्दू/आर्य कहने से हिचकने लगी जबकि नास्तिक/सेक्युलर या साम्यवादी कहने में गौरव महसूस करने लगी।  किसी ने सत्य कहा है कि झूठ को अगर हज़ार बार चिल्लाये तो वह सत्य लगने लगता हैं।

जैसे उस अपरिपक्व पंडित को चोरों ने बहका दिया था। ठीक वैसे ही हम भी बहक गए है। आज आप निश्चय कीजिये कि क्या आप आज भी बहके रहना चाहते है अथवा सत्य को स्वीकार करना चाहते हैं। निर्णय आपका है।


(राष्ट्रहित में जारी)

डॉ विवेक आर्य


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